उपग्रह भेजने में चीन को पीछे छोड़ेगा भारत?

इसरो, जीएसएलवी
जीएसएलवी-डी 5 का सफल प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए कमर्शियल सैटेलाइट लॉन्चिंग के क्षेत्र में नए आयाम खोलता है. ये बाज़ार कई अरब डॉलर का है.
हालांकि इसे आंकड़ों में निर्धारित कर पाना तो मुश्किल है लेकिन यह तय है कि बाज़ार बहुत बड़ा है और मैदान में केवल अमरीका, रूस, फ्रांस और चीन ही हैं.

एक बार ये मज़बूत स्थिति बन गई तो फिर भारत को कॉन्ट्रैक्ट मिलने लगेंगे. हालांकि अभी थोड़ा सा वक्त लगेगा.फ़िलहाल भारत के लिए यह एक प्रायोगिक उड़ान थी. एक और परीक्षण करना होगा, उसके बाद भारत के लिए संभावनाएं अपार है क्योंकि इससे भारत न सिर्फ़ अपने बल्कि दुनिया के दूसरे देशों के उपग्रह छोडऩे की स्थिति में आ जाएगा. इसका सीधा मतलब है विदेशी मुद्रा.
अभी अमरीका, रूस और फ्रांस बहुत सारे छोटे-छोटे देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्रीकी देशों के लिए भी सैटेलाइट लॉन्च करते हैं. चीन भी इसमें प्रवेश कर चुका है. भविष्य में भारत इसमें अहम साबित हो सकता है.
दूसरी बड़ी बात ये है कि भारत अब तक फ्रांस के आर्यन-5 रॉकेट के ज़रिए अपने सैटेलाइट भेज रहा था और इसके लिए फ़ीस देनी होती है क़रीब 600 करोड़ जबकि अपने लॉन्च व्हीकल से भेजने का मतलब होगा लागत 200 करोड़ पर आ जाना. यह एक सीधा फ़ायदा है क्योंकि इससे हर लॉन्च पर बहुत बचत होगी.

चीन से होड़

भारत के पदार्पण से यह सवाल ज़रूर उठता है कि क्या चीन से होड़ बढ़ेगी? लेकिन इस बाज़ार में क़ीमत ही सब कुछ तय करती है.
कम क़ीमत वाले सैटेलाइट लॉन्च बाज़ार में चीन भारत से प्रतियोगिता की क़ाबिलियत ज़रूर रखता है. कहीं ना कहीं चीन के साथ होड़ की स्थितियां तो ज़रूर बनती हैं.
इसरो, जीएसएलवी
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा, क़ानूनी बंदिशों के चलते चीन के साथ मिलकर कोई काम नहीं कर सकतीं. तो देखना होगा कि क्या भारत के लिए इससे मौक़े और बढ़ जाएंगे?
हालांकि अभी यह केवल भविष्य के एक वायदे की तरह है.

आम आदमी को फ़ायदा

एक आम आदमी की नज़र से देखा जाए तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम अपने आप में बहुत फ़ायदेमंद रहा है. अगर इस स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के सफल प्रक्षेपण की बात की जाए तो यह बहुत तरह से मददगार साबित होगा. इसके ज़रिए दो टन या ज़्यादा वज़न के जो सैटेलाइट लॉन्च किए जाने हैं उनके लिए यह तकनीक हासिल करना बेहद ज़रूरी था.
जी सेट-14 में मौजूद 12 संचार ट्रांसपॉन्डरों से इनसेट और जी सेट प्रणाली की क्षमता बढ़ेगी, ख़ासकर मीडिया इंडस्ट्री को अगर सस्ते ट्रांसपॉन्डर मिल पाते हैं तो उसे बहुत फ़ायदा होगा क्योंकि ट्रांसपॉन्डर का ख़र्च कम होगा..
दूसरा फ़ायदा होगा टेलीकॉम क्षेत्र को. भारती जीपीएस नैविगेशन प्रणाली लगा रहा है. भारत ने सैटेलाइट आधारित एयरक्राफ़्ट नैविगेशन प्रणाली लगाई है जिससे ईंधन बचाने में बहुत मदद मिलती है.
क्रायोजनिक इंजन, भारत
इसी तरह मछली पकड़ने के लिए ये बहुत ज़रूरी तकनीक उपलब्ध करा सकेगा. सैटेलाइट के ज़रिए जुटाई गई जानकारी से समुद्र में मौजूद मछली वाले क्षेत्रों की सही पहचान कर उनकी जानकारी देने से मछुआरों को बहुत फ़ायदा होगा.
मौसम की जानकारी और भविष्यवाणी की दिशा में बहुत मदद मिलेगी. अभी जब भारत में पायलिन तूफ़ान आया था तो भारतीय सैटेलाइट के ज़रिए सटीक जानकारी मिलने के चलते ही ख़तरे से निपटने के लिए ज़रूरी तैयारियां की जा सकीं.
मैं ख़ुद अमरीका जा चुका हूं और चीन की अंतरिक्ष एजेंसी भी बेहद साफ़ ढंग से ये मानती है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अनुप्रयोग से संबंध रखता है और लोगों के लिए है.